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Sri Sri Borma Magical Moment |
| | 🌺परमाराध्या जगत जननी श्रीश्री बड़माँ | |
स्वयं महालक्ष्मी 🌺
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श्रीश्रीबड़माँ की देवीय लीला
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परमदयाल श्रीश्रीठाकुरजी की लीलासंगिनी रुप में अवतीर्ण होकर वे जो स्वभाविक जीवनयापन करती थी उस मध्य में दैवीय लीला प्रत्यक्ष किये हैं अनगिनत भक्तप्राण नर-नारी । श्रीश्रीबड़माँ की सत्संगी दादा एवं माँ सभी " श्रीश्री लक्ष्मीमाता " के रूप में पूजा करते हैं । श्रीश्रीबड़माँ स्वयं ही अनेकों के पास में परिचय
करायी है ।
पाबना जिले के गाँड़ादेह ग्राम के बाशिंदा श्री गणेशचन्द्र पाल के कन्या हेमागंनि देवी श्री श्री ठाकुरजी के श्रीचरणों में आश्रिता थी । परवर्ती काल में रायगंज के कांचनपल्ली में रहते थे । वे अपने घर में लक्ष्मी माता की प्रतिमा स्थापित करके रोज पूजा-अर्चना करते थे । पुजा के समय में लक्ष्मी माता को पान एवं सुपारी निवेदन करते थे । एक दिन ऐसा हुआ कि पान लक्ष्मीदैवी के हाथ से गिर गया । तब हेमागंनि माँ को इच्छा हुई कि श्रीश्रीबड़माँ के हाथों में पान-सुपारी निवेदन करने की । इच्छा होते ही साथ ही साथ पान-सुपारी हाथ में लिए श्रीश्रीबड़माँ के यहाँ गई । श्रीश्रीबड़माँ उस समय अपने दलान घर के बरामदे में चटाई बिछा कर लेटी हुई थी । फर्श उस समय सिमेंन्टेड़ किया हुआ नहीं थी यू ही मिट्टी की थी । ये माँ पान सुपारी दे कर चली जा रही थी - वे थोड़ी दूर ही गई थी कि तभी श्रीश्रीबड़माँ उसे आवाज देकर बुलाई और बोली - " एई देखों मैं किन्तु सुधीर दास के दुकान की मिठाई खाती हूँ ।"
श्रीश्रीबड़माँ के मुख से यह सुनकर ये माँ खूब ही लज्जित हुईं । वो माँ मन ही मन सोची - सच में माँ को केवल पान-सुपारी दे कर पूजा करती हूँ मिठाई तो निवेदन नहीं करती हूँ । तब वो माँ सुधीर-दा के दुकान से श्रीश्रीबड़माँ के भोग में उपयोगी मिष्ठान्न खरीद लायी । बाद में श्रीश्रीबड़माँ से जिज्ञासा की - माँलक्ष्मी की प्रतिमा के बदले यदि आपकी छवि बिठा कर पूजा करु तो ? श्रीश्रीबड़माँ उत्तर में बोली - " कर सकती हो , तुम्हारी यही इच्छा है तो ।" श्रीश्रीबड़माँ सभी के पास में अपने आप को इतना स्पष्ट रूप से प्रकाशित नहीं करती थी । सौभाग्यवशत:इस माँ को वे उपरोक्त बातें बोली थी दया परवश होकर ।
[ पुस्तक - जयतू जननी मे , लेखक - श्री तरुण कुमार पाल , पृ0-215 ]
मूल बंग्ला से अनुवादित , भुल-त्रूटि के लिए क्षमाप्रार्थी ।
सभी को हार्दिक रा-नन्दित जय गुरु
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